Tuesday, September 26, 2023

कविता

जब जब सोचा 
अब आखिरी इम्तिहान है
मालिक ने मुस्कुराकर कहा  
खाली जो बैठा 
दिमाग उसका शैतान है
उठ चल लगा दिमाग के घोड़े
कस ले चंचल मन को
शुरू हो चुकी है 
पास आ चुकी है
 घड़ी परीक्षा की
गिरती बिजली सी
चलती आंधी सी
गुम हो जाती रोशनी को
लौट कर लाना है
डूबते सूरज को उगाना है
प्रकृति नही हारती है
तुम्हे कैसे भाग पाना है
जीवन है तो सीखो इससे
सीख ,मन सबल बनाना है
थकना रुकना नही है
बस चलते जाना है 
हर इम्तिहान सफल बनाना है
जीवन नईया पार लगाना है।
HHossana(होसाना)

Thursday, August 17, 2023

इंसानी गुडिया

इंसानी गुडिया नहीं
रखा और रख छोड़ दिया
जाने के बाद लौट आना, 
आकार जाना गलत था 
ये बताना,
बता बता कर फिर करीब आना
ये सही नहीं
मैं कोई बचपन की गुड़िया नही
खेल कर फेंक दिया 
मन भर कर खेल लिया
महीनो सालों सुद न ली 
जब आई फिर याद तो
लताश ज़ारी की
मिली कहीं जब दबी कुचली
कपड़ो को झाड़ा साफ किया
मन भर तक खेल लिया
जीती हुई इंसान हूं मैं
भावों का भंडार हूं मैं
तुम्हारा मन पसंद खिलौना नही
जिसे जब चाहा खेला 
जब चाहा छोड़ दिया
इंसानी गुडिया नहीं
रखा और रख कर छोड़ दिया।।
HHossana
16/8/23

Tuesday, June 13, 2023

यूं ही

देखा था मैने उसे अपनी एक एक सांस के लिए लड़ते हुए। उस क्लिनिक में कैसा बदहवास होकर पड़ा हुआ था। कितनी चोटें थी उसके तन पर। उस लकड़ी के तख्ते नुमा बेड पर देखे थे मैने उसके घाव। जहां लगी थी कई मशीनें और ऑक्सीजन सिलेंडर । यह सब देख मेरा ह्रदय और तन का रोम रोम  भयभीत होंचला था। डॉक्टर ने उसके मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगा रखा था ताकि जी सके वो भी । जब जब इलाज के दौरान डॉक्टर अपनी हिम्मत हारता दिखता वो पूरी हिम्मत के साथ फिर से सांसे लेने लगता और यकीन दिलाता कि मैं जीना चाहता हूं । मुझे बचा लो। उस क्लिनिक में खड़ा हर व्यक्ति उसके जीने के जज्बे को देख कर एक उम्मीद से अपने इष्ट से प्रार्थना करने लगता । इसे इसका जीवन पुनः मिल जाने की। 
अगर ये जीवन किसी इंसान का होता तो शायद कीमती भी होता पर एक पशु का था । एक सड़क पर घूमते आवारा कुत्ते का इसलिए शायद महत्वहीन था। तभी तो उसे सड़क पर किसी गाड़ी वाले के मारने के बाद उसे अस्पताल ले जाना भी ठीक नहीं समझा गया और उसे वही छोड़ आगे बड़ना सही लगा। न जाने कैसे उसने इतने दिन उन चोटों के साथ गुजारे । जब उसकी हालत ज्यादा बिगड़ी तब किसी पशुप्रेमी संस्था के पास खबर पहुंची और वे उसे डॉक्टर के पास ले आए ,पर शायद तब तक बात कुछ हद तक बिगड़ चुकी थी और जीने को लड़ता वह जानवर मौत के करीब था। मैं नहीं जानती कि वह जी गया या नहीं । फर्क क्या पड़ता है जी भी जाता तो फिर किसी और की गाड़ी का शिकार हो जाता।
आज भी उसकी वो हालत नही भूल पाती हूं जिस तरह उसे अपने जीवन के लिए लड़ते देखा । सकारात्मक रूप से यही सीखा कि हार मत मानो और यह की सबको जीने का अधिकार है वो भी जीव है आत्मा का वास उन में भी है बस हम सब जब मानवता ही भूल गए है तो क्या जीव क्या निर्जीव। सब एक समान। बस याद है तो स्वयं ।
HHossana(होसना)

Wednesday, September 28, 2022

छोटी सी मुस्कान

एक छोटी सी मुस्कान

बात कल की है किसी काम से बस में बैठी और दुनियां की चिकचिक से ख़ुद को दूर करने के लिए कान में एअरफ़ोन लगा कर ग़ज़ल सुनने लगी। 
हालांकि मौसम के मिज़ाज और शरीर की थकान ने आंखों को नींद के सागर में डुबाने की भरपूर कोशिशें की।
अब एक वक़्त पर हमने भी हथियार छोड़ ही दिये और नींद के आग़ोश में जाने लगे । तभी रास्ते पर लगे ट्रैफिक और गर्मी ने आंखों के पटल को थोड़ा खोलने पर मजबूर कर दिया । अध खुली आंखों ने खिड़की से बाहर  देखते हुए ; एक स्कूल बस को देखना मुनासिब समझा।
थकी -भारी आंखें, मायूस और गुमसुम चेहरे पर उस समय मुस्कान फैला गयी जब बस में बैठे एक मासूम बच्चे ने बिना किसी जान पहचान के मेरी तरफ़ देखते ही अपना हाथ (बाई करने की मुद्रा में ) हिलाया।
उसकी मासूमियत और मुस्कुराता चेहरा जिस पर कोई कपट नहीं , मुझे जिंदगी का एक प्यारा फ़लसफ़ा समझा गयी कि जिंदगी बहुत छोटी, सरल और दयावान है बस ख़ुद को ख़ुद से(अपने अहम से) ऊपर उठाने के जरूरत है ।  जब सबको यहां से जाना ही है तो एक मासूम मुस्कान देने में क्या हर्ज़ है। उस एक मुस्कान ने मेरी थकान,पीड़ा को ख़त्म कर दिया और फिर हर समय बस एक मुस्कान लिए मैं बाहर से घर भी आई।

न जाने कब बड़े हो गये। चिंता , अवसाद, क्रोध, पीड़ा, अपमान, सम्मान जैसी अनगिनत भावों से भर गए।जिंदगी बस जीना मांगती है हम इसे जटिल करते चलते है क्योंकि हम जीवन को तुच्छ समझ बैठे है। बस भाग रहे है जीवन को सुगम बनाने को लेकिन उसकी सुगमता है किसमें ? 

इस सवाल के जबाब को ढूंढना नहीं चाहते है। बस अपनों या आस-पास से जीवन रूपी प्रतियोगिता जीतने की चाह है । मानो हम जीवन यात्रा में नहीं बल्कि जीवन की इस दौड़ में प्रतिभागी है। जहां यात्रा का आनंद नहीं लिया जाता , अनुभवों से सीखा नहीं जाता बस जीतने की चाह होती है उस भौतिकता से डूबी मंजिल तक पहुँचने की चाह होती है जहाँ का कोई अंत नहीं होता। 
अब तो भावनाएं भी समय के अनुरूप ही कम- ज्यादा होती जा रही है या सच कहूं तो झूठी होती जा रही है। इंसान के स्वार्थ ने उसे भावनात्मक रूप से इतना ढ़ोंगी बना दिया है कि भावनायों का उपयोग भी समय की मांग के अनुरूप  अब किया जाता है।
हम सब इस दिखावे से बहुत दूर थे।
कभी या अभी भी दूर हो सकते है। बस जरूरी है अंदर बैठे उस मासूम बच्चे को जगाने की।

बात जिंदगी को सरल करने की है। उसे जटिल बनाने की नही । यह शुरआत एक छोटी  मुस्कान भी बन सकती है।
Priyankakhare
मीरांत
21।9।22
छाया क्रेडिट-गूगल


Tuesday, September 13, 2022

अनुभव

अपने पर्यावरण को लेकर ,उसमे रहने वाले जीव जंतुओं को लेकर हम सब कितने जागरूक है। इस बात का अनुभव तब होता है जब अपनी आंखों से उनके प्रति दया-भाव या क्रूरता का दृश्य देखने को मिलता है। 
एक निजी अनुभव आप सब के साथ शेयर कर रही हूं-
आज से तीन या चार दिन पहले यूँ ही प्रकृति की गोद में जाने का मन हुआ। इस बात के लिए सौभाग्यशाली हूँ कि जहां रहती हूं वह शहर प्रकृति की कृपा दृष्टि में है।
भोपाल जितना खूबसूरत अपनी झीलों के लिए है उतना ही प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी । ऐसी ही खूबसूरत मंज़र को देखने हम निकल पड़े। सुनसान सड़कें दोनों तरफ से घने पेड़ो से घिरी  हुई या यूं कहूँ जंगलों के बीच में मानव निर्मित सड़के । एक मनचली प्रेमिका की तरह लग रही थी जो सुंदर , चंचल और यौवन से भरी हुई हो। 
उस पर बीच में खेतों की हरियाली, ऊँची पहाड़ी, बीच-बीच में बहता नदी का पानी। 
इतने सुंदर मंज़र में डूबे हम दोनों बस रास्ते का आनंद ले रहे थे। तभी अचानक से देखते है कि बीच सड़क पर एक कार का दरवाज़ा खुला पड़ा है और उस दरवाज़े की ओर बहुत से बंदर आ / जा रहे है। चूँकि सड़क चलायमान थी मतलब भीड़ न सही फिर भी गाड़ियां सड़क पर भाग रही थी ऐसे में एक बुद्धिमान इंसान का सड़क के मध्य गाड़ी रोक कर बंदरो को खाना देना कितनी बुद्धिमानी का सबक है। जनाब ख़ुद को लेकर कितने सज़ग थे नहीं पता परन्तु जंगल में रहने वाले बंदरों की उन्हें ज़रा भी फिक्र नही थी तभी बीच सड़क पर उन्हें खाना फेक कर दे रहे थे । जिससे मुसाफिरों को तो आने जाने में परेशानी हो ही रही थी सबसे बड़ी परेशानी बंदरों की जान का ख़तरा थी कब कौन गाड़ी अपना संतुलन खो दे और उन्हें टक्कर मार दे। 
शायद इस सोच से अनभिज्ञ बुद्धिमान मानव न सिर्फ उनकी जान तो खतरे में डाल ही रहा था बल्कि उन लोगों की भी जो वहां से गुजर रहे थे।
वहां से गुजरते हुए जब हमने उस पर चिल्लाया कि -
"क्या कर रहे हो अंकल ?"

तब जाकर उन्होंने वहां से जाना ठीक समझा।

मेरा बस यही अनुरोध है कि ऐसे काम न करें । जितना हक़ आपको है इस दुनिया में अपनी पूरी उम्र जीने का; उतना ही इन जीव जंतुओं का भी है । मानव जाति अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दे ।
कभी सोचा है जैसा व्यवहार हम इन जीव जंतुओं और पशु पक्षियों के साथ करते है।
वही व्यवहार कभी वो हमारे साथ करने लगे फिर - क्या करेंगे आप?
ये पर्यावरण हम सब से मिलकर बना है इसके संतुलन के लिए जितनी जरूरत इंसान की है उतनी ही जीव जंतुओं और पशु पक्षियों की नदी, तालाबों की है।
कृपया इनके साथ मानवीय व्यवहार अपनाए। 

Priyankakhare
मीरांत
13 sep 2022

Sunday, March 27, 2022

कविता

जब दिल करे पास आना, जब मन करे दूर जाना
यही सिलसिला है मेरी कहानी का 
उसकी चौखट मेरा अफसाना
दूर तलक हर शाम को डूबते सूरज के साथ
सोचा था बैठेगे कभी झील के किनारे
नारंगी रंग में धुले बादलों के साथ
तुम गैर हुए कोई बात नहीं 
दूर हो मुझसे मेरे पास नहीं
फिर भी एक आहट है दिलमे
तेरे मेरे होने के पास
कोशिश है करना ही होगा
दर्द के टुकड़ों को सीनाही होगा
मुस्कुरा कर जिंदगी को मेरी 
बिन तेरे अब जीना ही होगा~priyaankakhare

Thursday, March 10, 2022

कविता

वक़्त की राह ,वक़्त की चाह 
वक़्त की एहमियत बतला जाती है 
जब वक़्त कम ,लंबे रास्ते , 
मंजिले दूरतलक आकाशमय प्रतीत हो जाती है
फिर से चलो इस वक़्त को थाम लेते है
कुछ वक़्त के लिए ही सही
 सबको अलविदा कहते है।
Priyaanka khare

कविता

जब जब सोचा  अब आखिरी इम्तिहान है मालिक ने मुस्कुराकर कहा   खाली जो बैठा  दिमाग उसका शैतान है उठ चल लगा दिमाग के घोड़े कस ले चंचल मन को शुरू ...